
अयमात्मा स्वभावेन शरीरादेर्विलक्षण: ।
चिदानन्दमय: शुद्धो बन्धं प्रत्येकवानपि ॥1॥
अन्वयार्थ : यह आत्मा यदि कर्मबन्ध की दृष्टि से देखा जाए तो बंधरूप वा एकरूप है और स्वभाव की दृष्टि से देखा जाए तो शरीरादिक से विलक्षण चिदानन्दमय परद्रव्य से भिन्न है, शुद्ध है ॥१॥
वर्णीजी