
दुरन्तदुरितारातिपीडितस्य प्रतिक्षणम् ।
कृच्छ्रान्नरकपातालतलाज्जीवस्य निर्गम: ॥1॥
अन्वयार्थ : बुरा है अन्त जिसका, ऐसे पापरूपी वैरी से निरन्तर पीड़ित इस जीव का प्रथम तो नरकों के नीचे निगोदस्थान है, सो वहाँ के नित्यनिगोद से निकलना अत्यन्त कठिन है ॥१॥
वर्णीजी