(मालिनी)
पवनवलयमध्ये संभृतोऽत्यन्तगाढं
स्थितिजननविनाशालिङ्गितैर्वस्तुजातै: ।
स्वयमिह परिपूर्णोऽनादिसिद्ध: पुराण:
कृतिविलयविहीन: स्मर्यतामेष लोक: ॥7॥
अन्वयार्थ : इस लोक को ऐसा चिंतवन करना चाहिये कि तीन वलयों के मध्य में स्थित है। पवनों से अतिशय गाढ़रूप घिरा हुआ है। इधर-उधर चलायमान नहीं होता और उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यसहित वस्तु-समूहों से अनादिकाल से स्वयमेव भरा हुआ है अर्थात् अनादिसिद्ध है, किसी का रचा हुआ नहीं है इसी कारण पुराण है तथा उत्पत्ति और प्रलय से रहित है। इस प्रकार लोक को स्मरण करते रहो, यह लोकभावना का उपदेश है।
(दोहा)
लोकस्वरूप विचारिके, आतमरूप निहारि ।
परमारथ व्यवहार मुणि, मिथ्याभाव निवारि ॥११॥

  वर्णीजी