+ मंगलाचरण -
सिद्धे जयप्पसिद्धे चउव्विहाराहणाफलं पत्ते ।
वंदित्ता अरिहंते वोच्छं आराहणा कमसो॥1॥
सिद्ध प्रसिद्ध लोक में चौविध आराधन का फल पाया ।
आराधना कहूँ मैं क्रम से अरहन्तों को शीश नवा॥1॥
अन्वयार्थ : अहं अर्थात् मैं शिवकोटि नाम धारक मुनि, इस जगत् में प्रसिद्ध चार प्रकार की आराधना के फल को प्राप्त हुए सिद्ध परमेष्ठी एवं अरहन्त परमेष्ठी की वंदना करके अनुक्रम से आराधना को कहूँगा ।

  सदासुखदासजी