+ अब आराधनाओं के नाम और स्वरूप को कहते हैं- -
उज्जोवणमुज्जवणं, णिव्वहणं साहणं च णित्थरणं ।
दंसणणाणचरित्तं - तवाणमाराहणा भणिदा॥2॥
दर्शन-ज्ञान-चरित्र और तप का उद्योत तथा उद्यम ।
निर्वाहन, साधन निस्तारण कहें जिनेश्वर आराधन॥2॥
अन्वयार्थ : सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, सम्यक्तप - इनका उद्योतन अर्थात् उज्ज्वल करना, इनकी पूर्णता के लिये उद्यम करना, इनका निराकुलता से निर्वाह करना, निरतिचार सेवन करना एवं आयु के अंतपर्यंत निर्विघ्नतापूर्वक सेवन करके परलोक तक ले जाना, उसको जिनेन्द्र भगवान ने आराधना कही है ।

  सदासुखदासजी