मरणाणि सत्तरस देसिदाणि तित्थंकरेहि जिणवयणे ।
तत्थ वि य पंच इह संगहेण मरणाणि वोच्छामि॥25॥
तीर्थंकर की दिव्य-ध्वनि में मरण सप्तदश भेद कहे ।
उनमें पंच प्रकार मरण का कथन करूँ इस ग्रन्थ विषैं॥25॥
अन्वयार्थ : तीर्थंकर देव ने परमागम में सत्तरह प्रकार के मरण का उपदेश किया है । उन सत्तरह प्रकार के मरणों में से इस ग्रन्थ में प्रयोजनभूत पाँच प्रकार के मरण को संग्रह करके उन्हें कहने की प्रतिज्ञा करते हैं ।
सदासुखदासजी