पुव्वमभाविदजोग्गो आराधेज्ज मरणे जदि वि कोई ।
खण्णूगदिट्ठंतो सो तं खु पमाणं ण सव्वत्थ॥24॥
पहले आराधना न की हो अन्त समय आराधक हो ।
स्थाणुमात्र1 दृष्टान्त गहो यह, यह सर्वत्र प्रमाण न हो॥24॥
अन्वयार्थ : यद्यपि किसी पुरुष/जीव ने मरण काल के पहले आराधना की सामग्री की भावना नहीं की , अभ्यास भी नहीं किया; फिर भी मरण काल के समय में आराधना कोप्राप्तहुएदेखेहैं,तथापिसमस्त भव्यों को आराधना के अभ्यास में निरुद्यमी रहना योग्य नहीं है ।
सदासुखदासजी