पं-सदासुखदासजी
कसायग्गी चरित्तसारं डह
सम्मत्तं पि विराधिय अणंतसंसारियं कुज्जा॥271॥
ज्वलित कषायाग्नि समस्त चारित्रसार को करे विनष्ट ।
समकित को भी नष्ट करे संसार अनन्त करे उत्पन्न॥271॥
सदासुखदासजी