इगविगतिगचदुरिंदियणामाइं तध तिरिक्खगदिणामं ।
खवयित्ता मज्झिल्ले खवेदि सो अठ्ठवि कसाए॥2103॥
इक दो त्रय चतु-इन्द्रिय जाति तिर्यक् ये सोलह प्रकृति ।
मध्यम आठ कषाय प्रकृतियों को भी वह कर देता क्षीण॥2103॥

  सदासुखदासजी