तत्तो णंतरसमए उप्पज्जदि सव्वपज्जयणिबंधं ।
केवलणाणं सुद्धं तध केवल दंसणं चेव॥2110॥
तदनन्तर ही सर्व द्रव्य अरु पर्यायों का जाननहार ।
केवलज्ञान और दर्शन-केवल उत्पन्न होय तत्काल॥2110॥

  सदासुखदासजी