णिद्दापचलाग दुवे दुचरिमसमयम्मि तस्स खीयंति ।
सेसाणि घादिकम्मणि चरिमसमयम्मि खीयंति॥2109॥
क्षीण कषाय उपान्त्य समय में निद्रा-प्रचला होती नष्ट ।
घाति कर्म की शेष प्रकृतियाँ अन्त समय में होतीं नष्ट॥2109॥
अन्वयार्थ : उस क्षीणकषाय गुणस्थान के द्वि चरम समय में 1 निद्रा, 2 प्रचला - ये दर्शनावरण कर्म की दो प्रकृतियाँ क्षय हो जाती हैं । शेष ज्ञानावरण कर्म की पाँच प्रकृति और दर्शनावरण की चार तथा अन्तरायकर्म की पाँच - ऐसी चौदह प्रकृतियों का क्षीणकषाय गुणस्थान के अन्त समय में क्षय करते हैं ।

  सदासुखदासजी