पं-सदासुखदासजी
चित्तपडं व विचित्तं तिकालसहिदं तदो जगमिणं सो ।
सव्वं जुगदं पस्सदि सव्वमलोगं च सव्वत्तो॥2112॥
सर्व जगत एवं अलोक को पर्यायें त्रयकाल सहित ।
चित्र पटलवत् यह विचित्र जग सब जानें प्रभुवर युगपत्॥2112॥
सदासुखदासजी