खमदमणियमधराणं धुदरयसुहदुक्खविप्पजुत्ताणं ।
णाणुज्जोदियसल्लेहणम्मि सुणमो जिणवराणं॥2177॥
क्षम दम नियम धारकर कर्मकलंक तथा सुख दुःख से मुक्त ।
ज्ञान किरण से सल्लेखना प्रकाशक जिनवर को वन्दन॥2177॥
अन्वयार्थ : पूर्व अवस्था में धारण की है क्षमा, इन्द्रियों का दमन, नियम जिनने और नष्ट किये हैं कर्मरूप रज जिनने, इन्द्रियजनित सुख-दु:खरहित तथा केवलज्ञान द्वारा उद्योतित करके की है सल्लेखना जिनने, ऐसे जिनवर को हमारा भले प्रकार मन-वचन-कायपूर्वक नमस्कार हो!

  सदासुखदासजी