असुरसुरमणुयकिण्णर रविससिकिंपुरिस महियवरचरणो ।
दिसउ मम बोहिलाहं जिणवरवीरो तिहुवणिंदो॥2176॥
सुर नर किन्नर असुर किंपुरुष रवि शशि जिनको करें प्रणाम ।
त्रिभुवन वन्दित वीर जिनेश्वर देवें बोधि समाधि निधान॥2176॥
अन्वयार्थ : असुर, सुर, मनुष्य, किन्नरदेव, सूर्य, चन्द्रमा, किंपुरुष इत्यादि के द्वारा वन्दनीय हैं चरणारविन्द जिनके और तीन भुवन के ईश्वर ऐसे जिनवर वीर भगवान वर्द्धमान तीर्थंकर परम देव, हमें सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र, सम्यक्तपरूप चार आराधनाओं में लीनतासहित बोधिलाभ या आराधना का अवलंबनसहित मरण हो - ऐसी प्रार्थना है ।

  सदासुखदासजी