+ सम्यग्दर्शन आदि गुणों से पूज्य गृहस्थाश्रम -
आराध्यन्ते जिनेन्द्रा गुरुषु च विनतिर्धार्मिकैः प्रीतिरुच्चैः
पात्रेभ्यो दानमापन्निहतजनकृते तच्च कारुण्यबुद्धया
तत्त्वाभ्यासः स्वकीयव्रतरतिरमलं दर्शनं यत्र पूज्यं
तद्गार्हस्थ्यं बुधानामितरदिह पुनर्दुःखदो मोहपाशः ॥13॥
जिनपूजा, गुरुसेवा-उपासना, साधर्मी में वत्सलभाव ।
पात्रदान अरु दीन-दु:खी, जीवों को होता करुणा-दान ॥
तत्त्वाभ्यास व्रतों में प्रीति, निर्मल हो सम्यग्दर्शन ।
बुधजन पूज्य गृहस्थाश्रम यह, किन्तु विपर्यय दु:ख-कारण ॥
अन्वयार्थ : तथा जिस गृहस्थाश्रम में जिनेन्द्र भगवान की पूजा उपासना की जाती है तथा निग्र्रन्थगुरुओं की भक्ति सेवा आदि की जाती है और जिस गृहस्थाश्रम में धर्मात्मापुरुषों का परस्पर में स्नेह से वर्ताव होता है तथा मुनि आदि उत्तमादिपात्रों को दान दिया जाता है तथा दु:खी दरिद्रियों को जिस गृहस्थाश्रम में करुणा से दान दिया जाता है और जहाँ पर निरन्तर जीवादि तत्व का अभ्यास होता रहता है तथा अपने-अपने व्रतों में प्रीति रहती है और जिस गृहस्थाश्रम में निर्मल सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है वह गृहस्थाश्रम विद्वानों के द्वारा पूजनीक होता है किन्तु उससे विपरीत इस संसार में केवल दु:ख का देने वाला है तथा मोह का जाल है॥१३॥