+ व्रत-ग्रहण से पूर्व सप्त व्यसन का त्याग आवश्यक -
यत्प्रोक्तं प्रतिमाभिराभिरभितो विस्तारिभिः सूरिभिः
ज्ञातव्यं तदुपासकाध्ययनतो गेहिव्रतं विस्तरात्
तत्रापि व्यसनोज्झनं यदि तदप्यासूत्र्यते ऽत्रैव यत्
तन्मूलः सकलः सतां व्रतविधिर्याति प्रतिष्ठां पराम् ॥15॥
आचार्यों ने प्रतिमादिक का, किया बहुत विस्तृत वर्णन ।
उपासकाध्ययनादि ग्रन्थों से, जानो श्रावक-व्रत-विवरण ॥
व्यसन-त्याग भी वहाँ कहा है, और यहाँ भी करें कथन ।
क्योंकि इसी से सत्पुरुषों की, व्रत-विधि प्राप्त करे सम्मान ॥
अन्वयार्थ : समन्तभद्र आदि बड़े—बड़े आचार्यों ने ग्यारह प्रतिमा तथा और भी गृहस्थों के व्रत अत्यन्त विस्तार के साथ अपने—२ ग्रन्थों में वर्णन किये हैं इसलिये उपासकाध्ययन से इनका स्वरूप विस्तार से जानना चाहिये और उन्हीं आचार्यों ने जूआ खेलना-१ मद्यपीना-२ मांस खाना-३ आदि सातों व्यसनों का भली भांति स्वरूप दिखाकर उनके त्याग की अच्छी तरह विधि बतलाई है तथा इस ग्रन्थ में भी उन सप्तव्यसनों के त्याग का वर्णन किया जायगा क्योंकि सप्तव्यसनों के त्याग से ही सज्जनों की व्रतविधि अत्यन्त प्रतिष्ठा को प्राप्त करती है बिना व्यसनों के त्याग के नहीं ॥१५॥