द्यूताद्धर्मसुत: पलादिह बको मद्याद्यदोर्नन्दना:,
चारु: कामुकया मृगान्तकतया स ब्रह्मदत्तो नृप: ।
चौर्यत्वांच्छिवभूतिरन्यवनितादोषाद्दशास्यो हठात्,
एकैकव्यसनोद्धता इति जना: सर्वैर्नं को नश्यति ॥31॥
जुआ मांस अरु मद्य-पान से, धर्मराज बक यदुनन्दन ।
मृग-क्रीड़ा से ब्रह्मदत्त नृप, चारुदत्त वेश्या-सेवन ॥
चोरी से शिवभूति पुरोहित, पर-नारी से रावण नष्ट ।
एक व्यसन-सेवन से होते, सब से नहीं कौन-सा कष्ट? ॥
अन्वयार्थ : जूआ से तो युधिष्ठिरनामक राजा राज्य से भ्रष्ट हुए तथा उनको नाना प्रकार के दु:ख उठाने पड़े तथा मांस भक्षण से वक नाम का राजा राज्य से भ्रष्ट हुआ तथा अंत में नरक गया और मद्य पीने से यदुवंशी राजा के पुत्र नष्ट हुवे तथा वेश्याव्यसन के सेवन से चारूदत्त सेठि दरिद्रावस्था को प्राप्त हुवे तथा और भी नाना प्रकार के दु;खों का उनको सामना करना पड़ा और शिकार की लोलुपता से ब्रह्मदत्त नाम का राजा राज्य से भ्रष्ट हुवा तथा उसे नरक जाना पड़ा। तथा चोरी व्यसन से सत्यघोषनामक पुरोहित गोबर खाना सर्वधनहरण हो जाना आदि नाना प्रकार के दु:खों को सहनकर अंत में मल्ल की मुष्टि से मरकर नरक को गया। तथा परस्त्री सेवन से रावण को अनेक दु:ख भोगने पड़े तथा मरकर नरक गया आचार्य कहते हैं कि एक—२ व्यसन के सेवन से जब इन मनुष्यों की ऐसी बुरी दशा हुई तथा ये नष्ट हुवे तब जो मनुष्य सातों व्यसनों का सेवन करने वाला है वह क्यों नहीं नष्ट होगा ? इसलिये भव्यजीवों को चाहिये कि वे किसी भी व्यसन के फन्दे में न पड़े॥३१॥