सर्वाणि व्यसनानि दुर्गतिपथाः स्वर्गापवर्गार्गलाः
वज्राणि व्रतपर्वतेषु विषमाः संसारिणां शत्रवः ।
प्रारम्भे मधुरेषु पाककटुकेष्वेतेषु सद्धीधनैः
कर्तव्या न मतिर्मनागपि हितं वाञ्छद्भिरत्रात्मनः ॥33॥
सभी व्यसन हैं दुर्गति पथ, अरु स्वर्ग-मोक्ष के अवरोधक ।
परम शत्रु हैं सब प्राणी के, महावज्र हैं व्रत-पर्वत ॥
पहले तो ये मधुर लगें पर, महाकटुक है इनका अन्त ।
अत: न किञ्चित् सेवें इनको, आत्म-हितैषी सत् धीमन्त ॥
अन्वयार्थ : जिन मनुष्यों की बुद्धि निर्मल है तथा जो अपनी आत्मा का हित चाहते हैं उनको कदापि व्यसनों की ओर नहीं झुकना चाहिये क्योंकि ये समस्तव्यसन दुर्गति को ले जाने वाले हैं तथा स्वर्ग मोक्ष के प्रतिबंधक हैं और समस्तव्रतों के नाश करने वाले हैं तथा प्राणियों के ये परम शत्रु हैं तथा प्रारंभ में मधुर होने पर भी अंत में कटुक है इसलिये इनसे स्वप्न में भी हित की आशा नहीं होती॥३३॥