
श्रेयोऽभिधस्य नृपते: शरदभ्रशुभ्र-,
भ्राम्यद्यशोभृतजगत्त्रितयस्य तस्य ।
किं वर्णयामि ननु सद्मनि यस्य भुक्तं,
त्रैलोक्यवन्दितपदेन जिनेश्वरेण॥2॥
शरद मेघ-सम उज्ज्वल यश है, जिनका तीन लोक में व्याप्त ।
क्या महिमा उनकी जिनके घर, जिनवर ने आहार लिया॥
अन्वयार्थ : ग्रन्थकार कहते हैं कि शरद काल के मेघ के समान भ्रमण करते हुए उज्ज्वल यश ने तीनों जगत् को पूर्ण कर दिया है अर्थात् जिनका उज्ज्वल यश तीनों लोक में फैला हुआ है - ऐसे श्री श्रेयांस नामक राजा की हम क्या प्रशंसा करें, जिस श्रेयांस राजा के घर में तीन लोक के द्वारा पूजनीय श्री ऋषभदेव भगवान ने आहार लिया था ।