+ पृथ्वी के वसुमती नाम की सार्थकता -
श्रेयान् नृपो जयति यस्य गृहे तदाखा-,
देकाद्यवन्द्यमुनिपुङ्गवपारणायाम् ।
सा रत्नवृष्टिरभवज्जगदेकचित्र-,
हेतुर्यया वसुतीत्वमिता धरित्री॥3॥
जयवन्तो श्रेयांस नृपति, जिनके घर मुनिवर का आहार ।
हुई रत्नवृष्टि तब जिससे, भू का 'वसुमती' नाम प्रचार॥
अन्वयार्थ : वह श्रेयांस राजा सदा जयवन्त रहो, जिस श्रेयांस राजा के घर तीन लोक के द्वारा वन्दनीय श्री ॠषभदेव मुनिराज के पारणा के समय तीन लोक को आश्चर्य करने वाली रत्नों की ऐसी वर्षा हुई कि जिससे यह पृथ्वी साक्षात् वसुती नाम को धारण करने लगी ।