+ आज्ञा मार्ग और उपदेश सम्यक्त्व का स्वरूप -
आज्ञा सम्यक्त्वमुक्तं यदुत विरुचितं वीतरागाज्ञयैव
त्यक्तग्रन्थप्रपञ्चं शिवममृतपथं श्रद्दधन्मोहशान्तेः ।
मार्गश्रद्धानमाहुः पुरुषवरपुराणोपदेशोप जाता
या सज्ञानागमाब्धि प्रसुतिभिरुपदेशादिरादेशि दृष्टिः ॥१२॥
अन्वयार्थ : दर्शनमोह के उपशान्त होने से ग्रन्थश्रवण के बिना केवल वीतराग भगवान की आज्ञा से हो जो तत्त्वश्रद्धान उत्पन्न होता है उसे आज्ञासम्यक्त्व कहा गया है। दर्शनमोह का उपशम होने से ग्रन्थश्रवण के बिना जो कल्याणकारी मोक्ष मार्ग का श्रद्धान होता है उसे मार्गसम्यग्दर्शन कहते हैं। त्रेसठ शलाकापुरुषों के पुराण (वृत्तान्त) के उपदेश से जो सम्यग्दर्शन (तत्त्वश्रद्धान) उत्पन्न होता है उसे सम्यग्ज्ञान को उत्पन्न करने वाले आगमरूप समुद्र में प्रवीण गणधर देवादि ने उपदेश सम्यग्दर्शन कहा है ॥१२॥
Meaning : When, on subsidence (upaśama) of perception-delusion (darśanamoha), right faith (samyagdarśana) arises due to belief on the nature of substances as revealed by Lord Jina, without the study of the Scripture, it is called ājñāsamudbhava. When, on subsidence (upaśama) of perception-delusion (darśanamoha) and disinterest in worldly occupations, right faith (samyagdarśana) arises due to keen interest in the propitious path to liberation,without the study of the Scripture, it is called mārgasamudbhava. When right faith (samyagdarśana) arises on listening to the discourse on the sixty-three great personages (śalākā puruÈa) as detailed in the purāõa, it is called upadeśasamudbhava by the apostles (gaõadhara) who have mastered the Scriptureocean.

  भावार्थ 

भावार्थ :