भावार्थ :
विशेषार्थ- जो भी शुभ अथवा अशुभ कार्य स्वयं किया जाता है वह कृत, जो दूसरों के द्वारा प्रेरणापूर्वक कराया जाता है वह कारित, तथा दूसरों के द्वारा किये जाने पर जिसकी स्वयं प्रशंसा की जाती है वह अनुमत कहा जाता है। ये तीनों ही मन, वचन और काय से सम्बन्ध रखते हैं। यथा- मनकृत, मनकारित, मनानुमत, वचनकृत वचनकारित, वचनानुमत, कायकृत, कायकारित और कायानुमत । इस तरह चूंकि इन नौ प्रकारों से सुखप्रद धर्म का संग्रह भले प्रकार किया जा सकता है अतएव सुखाभिलाषी प्राणियों को उक्त प्रकार से उस धर्म का संग्रह करना चाहिये, यही उपदेश यहां दिया गया है ॥२५॥ |