+ पुण्योपार्जन की प्रेरणा -
आयुःश्रीवपुरादिकं यदि भवेत्पुण्यं पुरोपार्जितं
स्यात् सर्व न भवेन्न तच्च नितरामायासितेऽप्यात्मनि ।
इत्यार्याः सुविचार्य कार्यकुशलाः कार्येऽत्र मन्दोद्यमा
द्रागागामिभवार्थमेव सततं प्रीत्या यतन्ते तराम् ॥३७॥
अन्वयार्थ : यदि पूर्व में प्राप्त किया हुआ पुण्य है तो आयु, लक्ष्मी और शरीर आदि भी यथेच्छित प्राप्त हो सकते हैं । परन्तु यदि वह पुण्य नहीं है तो फिर अपने को क्लेशित करने पर भी वह सब (इष्ट आयु आदि) बिल्कुल भी नहीं प्राप्त हो सकता है। इसीलिये योग्यायोग्य कार्य का विचार करने वाले श्रेष्ठ जन भले प्रकार विचार करके इस लोक सम्बन्धी कार्य के विषय में विशेष प्रयत्न नहीं करते हैं, किन्तु आगामी भवों को सुन्दर बनाने के लिये ही वे निरन्तर प्रीतिपूर्वक अतिशय प्रयत्न करते हैं ॥३७॥
Meaning : Long-life, wealth and (strong and beautiful) body, etc., are obtained from the previously earned merit (puõya). The soul devoid of such merit cannot have these attributes even after excessive toil. Therefore, excellent men with discrimination, as a result of their deliberation, are only mildly enthused toward worldly occupations. But they work hard, incessantly and cheerfully, for the sake of their future lives.

  भावार्थ 

भावार्थ :