
उच्छ्वासः खेदजन्यत्वाद् दुःखमेषोऽत्र जीवितम् ।
तद्विरामो भवेन्मृत्युर्नृणां भणं कुतः सुखम् ॥७३॥
अन्वयार्थ : उच्छवास कष्ट से उत्पन्न होने के कारण दुखरूप है और यह उच्छ्वास ही यहां जीवन तथा उसका विनाश ही मरण है । फिर बतलाईये कि मनुष्यों को सुख कहां से हो सकता है? नहीं हो सकता है ॥७३॥
Meaning : Inhalation arises on account of unease and, therefore, it is misery. Here, life is till inhalation exists and its cessation is death. In such a situation, where is the happiness for the living beings?
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- अभिप्राय यह है कि श्वासोच्छ्वास का चालू रहना,यही तो जीवन है। सो वह श्वासोच्छ्वास चूंकि कष्ट से उत्पन्न होता है अतएव इससे समस्त जीवन ही दुखमय हो जाता है। और उस श्वासोच्छवास के नष्ट हो जाने पर जब मरण अनिवार्य है तब उसके पश्चात सुख भोगनेवाला रहेगा कौन ? इस प्रकार संसार में सर्वदा दुख ही है ॥७३॥
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