
भावार्थ :
विशेषार्थ- जिस प्रकार ऊंचे भी ताडवृक्ष से नीचे गिरे हुए फल क्षण मात्र अन्तराल में रहकर निश्चित ही पृथ्वीतल का आश्रय ले लेते हैं उसी प्रकार ताडवृक्ष के समान जन्म से उत्पन्न होने वाले प्राणी अल्प काल ही बीच में रहकर निश्चय से इस पृथ्वीतल के समान मृत्यु को प्राप्त करते ही हैं। तात्पर्य यह है कि जिस प्रकार वृक्ष से गिरा हुआ फल पृथ्वी के ऊपर अवश्य गिरता है उसी प्रकार जो प्राणी जन्म लेते हैं वे मरते भी अवश्य हैं-स्थिर रहनेवाला कोई भी नहीं है ॥७४॥ |