
सत्यं वदात्र यदि जन्मनि बन्धुकृत्य
माप्तं त्वया किमपि बन्धुजनाद्धितार्थम् ।
एतावदेव परमस्ति मृतस्य पश्चात्
संभूय कायमहितं तव भस्मयन्ति ॥८३॥
अन्वयार्थ : हे प्राणी ! यदि तूने संसार में भाई-बन्धु आदि कुटुम्बी जनों से कुछ भी हितकर बंधुत्व का कार्य प्राप्त किया है तो उसे सत्य बतला । उनका केवल इतना ही कार्य है कि मर जाने के पश्चात् वे एकत्रित होकर तेरे अहितकारक शरीर को जला देते हैं ॥८३॥
Meaning : O soul! Come out with the truth if any real, brotherly favour has been done to you by your brothers andrelations in this world. The only favour that they do to you is to assemble after your death and cremate your adversarial body.
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- बंधु का अर्थ हितैषी होता है । परंतु जिन कुटुम्बी जनों को बन्धु समझा जाता है वे वास्तव में प्राणी का कुछ भी हित नहीं करते हैं बल्कि, इसके विपरीत वे राग-द्वेष के कारण बनकर उसका अहित ही करते हैं । इसीलिये विवेकी जन को बन्धुजन में अनुरक्त न होकर अपने आत्महित में ही लगना चाहिये ॥८३॥
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