
भावार्थ :
विशेषार्थ- लोक में प्रसिद्धि है कि जो वस्तुएं अनेक बार परिचय में (उपभोग में) आ चुकी हैं उनमें अनुराग नहीं रहता है, इसके विपरीत जो वस्तु पूर्व में कभी परिचय में नहीं आयी है उसके विषय में प्राणी का विशेष अनुराग हुआ करता है । परन्तु पूर्वोक्त जीव की दशा इसके सर्वथा विपरीत है- जो दोष (राग-द्वेषादि) जीव के साथ चिर काल से सम्बद्ध हैं उनसे वह अनुराग करता है तथा जो सम्यग्दर्शनादि गुण उसे पूर्व में कभी भी नहीं प्राप्त हुए हैं उनमें वह अनुराग नहीं करता है । इस प्रकार से वह उपर्युक्त लोकोक्ति को भी असत्य करना चाहता है ॥९२॥ |