+ विषयी जीवों को युक्तिपूर्वक उपालम्भ -
अतिपरिचितेष्ववज्ञा नवे भवेत् प्रीतिरिति हि जनवादः।
तं किमिति मृषा कुरुषे दोषासक्तो गुणेष्वरतः ॥९२॥
अन्वयार्थ : अत्यन्त परिचित वस्तु में अनादरबुद्धि और नवीन में प्रेम होता है, यह जो किंवदन्ती (प्रसिद्धि) है उसे तू दोषों में आसक्त तथा गुणों में अनुराग रहित होकर क्यों असत्य करता है ? ॥९२॥
Meaning : It is a well-known adage that familiarity breeds contempt and novelty attracts. Why do you belie this by your attraction for the (long-standing, like attachment and aversion) evils and aversion for the (not yet attained, like right faith) virtues?

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- लोक में प्रसिद्धि है कि जो वस्तुएं अनेक बार परिचय में (उपभोग में) आ चुकी हैं उनमें अनुराग नहीं रहता है, इसके विपरीत जो वस्तु पूर्व में कभी परिचय में नहीं आयी है उसके विषय में प्राणी का विशेष अनुराग हुआ करता है । परन्तु पूर्वोक्त जीव की दशा इसके सर्वथा विपरीत है- जो दोष (राग-द्वेषादि) जीव के साथ चिर काल से सम्बद्ध हैं उनसे वह अनुराग करता है तथा जो सम्यग्दर्शनादि गुण उसे पूर्व में कभी भी नहीं प्राप्त हुए हैं उनमें वह अनुराग नहीं करता है । इस प्रकार से वह उपर्युक्त लोकोक्ति को भी असत्य करना चाहता है ॥९२॥