
भावार्थ :
विशेषार्थ- वृद्धावस्था में कान बहरे हो जाते हैं,आंखें अन्धी हो जाती हैं,और शरीर कांपने लगता है । यह शरीर की अवस्था बुढापे में स्वभावतः हो जाया करती है। इसपर यहां यह उत्प्रेक्षा की गई है कि बुढापे में प्रायः घर व बाहिर के सब ही जन तिरस्कार करने लगते हैं, उन निन्दावाक्यों को न सुनने की ही इच्छा से मानो वृद्ध के कान बहरे हो जाते हैं। इसी प्रकार उस अवस्था में मुंह से लार बहने लगती है,कपडों में मल-मूत्रादि हो जाता है, तथा निरन्तर खांसी व कफ आदि बना रहता है । इस प्रकार की घृणाजनक अवस्था को न देख सकने के ही कारण मानो वृद्ध की आंखें अन्धी हो जाती हैं । वह बुढापा क्या है मरण की निकटता की सूचना ही है, उसी के भय से मानो वृद्ध का शरीर कांपने लगता है । वह वृद्धावस्था का शरीर आग से जलते हुए महल के समान नष्ट हो जाने वाला है। फिर भी आश्चर्य है कि जब घर में आग लग जाती है तब उसके भीतर स्थित प्राणी व्याकुल होकर बाहिर निकलने का प्रयत्न करते हैं; परन्तु वह बेसुध हुआ वृद्ध उस नष्ट प्राय शरीर से मोह को नहीं छोडता और इसीलिये वह परभव को सुखमय बनाने के लिये कुछ प्रयत्न भी नहीं करता है ॥९१॥ |