
भावार्थ :
विशेषार्थ- यह सब ही जानते हैं कि राजा, महाराजा चक्रवर्ती एवं तीर्थंकर आदि जितने भी महापुरुष होते हैं वे सब पूर्वोपार्जित पुण्य के प्रभाव से ही होते हैं। फिर खे दकी बात तो यही है कि अनेक पराक्रमी एवं विद्वान् भी ऐसे हैं जो कि उक्त पुण्य के ऊपर विश्वास न करके लक्ष्मी की इच्छा से उन राजा आदि की ही सेवा करते हैं। वे यदि पुण्य के ऊपर विश्वास रखकर उसका उपार्जन करते तो उन्हें राजा आदि की सेवा न करने पर भी वह लक्ष्मी स्वयमेव प्राप्त हो जाती। इसके विपरीत पुण्योपार्जन के बिना कितनी भी वे राजा आदि की सेवा क्यों न करें, किन्तु उन्हें वह यथेष्ट लक्ष्मी कभी भी प्राप्त नहीं हो सकती है ॥९५॥ |