
क्षणार्धमपि देहेन साहचर्य सहेत कः।
यदि प्रकोष्ठमादाय न स्याद्वोधो निरोधकः ॥११७॥
अन्वयार्थ : यदि ज्ञान पोंचे को ग्रहण करके रोकनेवाले न होता तो कौन-सा विवेकी जीव उस शरीर के साथ आधे क्षण के लिये भी रहना सहन करता? अर्थात् नहीं करता ॥११७॥
Meaning : Which discriminating man would have wanted to live, even for half a moment, with this body if knowledge , holding his wrist, had not prevented him ?
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- प्राणी जो अनेक प्रकार के दुखों को सहता है वह केवल शरीर के ही संबंध से सहता है, इसीलिये कोई भी विवेकी जीव क्षणभर भी उसके साथ नहीं रहना चाहता है । फिर भी जो वह उसके साथ रहता है, इसका कारण उसका उपर्युक्त (अभीष्ट प्रयोजन की सिद्धिविषयक) विचार ही है ॥११७॥
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