+ संयमधारियों की महिमा -
प्राक् प्रकाशप्रधानः स्यात् प्रदीप इव संयमी।
पश्चात्तापप्रकाशाभ्यां भास्वानिव हि भासताम् ॥१२०॥
अन्वयार्थ : साधु पहिले दीपक के समान प्रकाशप्रधान होता है । तत्पश्चात वह सूर्य के समान ताप और प्रकाश दोनों से शोभायमान होता है ॥१२०॥
Meaning : The ascetic, in the beginning, is endowed primarily with luminousness*, like the earthen-lamp (dīpaka). Later on, he is endowed with both, heat** and luminousness, like the sun.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जिस प्रकार दीपक केवल प्रकाश से संयुक्त होकर घट-पटादि पदार्थों को प्रकाशित करता है उसी प्रकार साधु भी प्रारम्भ में ज्ञानरूप प्रकाश से संयुक्त होकर स्व और पर के स्वरूप को प्रकाशित करता है। यद्यपि इस समय उसके प्रकाश (ज्ञान) के साथ ही कुछ तप का तेज भी अवश्य रहता है, फिर भी उस समय उसकी प्रधानता नहीं होती जिस प्रकार कि तापकी दीपक में। परन्तु आगे की अवस्था में उसका वह प्रकाश (ज्ञान) सूर्य के प्रकाश के समान समस्त पदार्थों का प्रकाशक हो जाता है। इस अवस्था में उसके जैसे प्रकाश की प्रधानता होती है वैसे ही तेज (तपश्चरण) की भी प्रधानता हो जाती है ॥१२०॥