
भूत्वा दीपोपमो धीमान् ज्ञानचारित्रभास्वरः ।
स्वमन्यं भासयत्येष प्रोद्वमत्कर्म कज्जलम् ॥१२१॥
अन्वयार्थ : वह बुद्धिमान् साधु दीपक के समान होकर ज्ञान और चारित्र से प्रकाशमान होता है। तब वह कर्मरूप काजल को उगलता हुआ स्व के साथ पर को प्रकाशित करता है ॥१२१॥
Meaning : The wise ascetic who is like the earthen-lamp is endowed with luminosity of knowledge and conduct . During this period, while ejecting the collyrium * of karmas, he illumines self as well as others.
भावार्थ
भावार्थ :
विशेषार्थ- जिस प्रकार दीपक प्रकाश और तेज से युक्त होकर काजल को छोडता है और घट-पटादि पदार्थों को प्रगट करता है उसी प्रकार साधु भी ज्ञान और चारित्र से दीप्त होकर कर्म की निर्जरा करता है तथा आत्म-परस्वरूप को जानता भी है॥१२१॥
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