+ काम सेवन में खेद -
उत्तुङगसंगतकुचाचलदुर्गदूर
माराद्वलित्रयसरिद्विषमावतारम् ।
रोमावलीकुसृतिमार्गमनङगमूढाः
कान्ताकटीविवरमेत्य न केऽत्र खिन्नाः ॥१३२॥
अन्वयार्थ : जो स्त्री की योनि ऊंचे एवं परस्पर मिले हुए स्तनोंरूप पर्वतीय दुर्ग से दुर्गम है, पास ही उदर में स्थित त्रिवलीरूप नदियों से जहां पहुंचना भयप्रद है, तथा जो रोमपंक्तिरूप इधर उधर भटकानेवाले मार्ग से संयुक्त हैं; ऐसी उस स्त्री की योनि को पाकर कौन-से कामान्ध प्राणी यहां खेद को नहीं प्राप्त हुए हैं ? अर्थात् वे सभी दुख को प्राप्त हुए हैं ॥१३२॥
Meaning : The vulva is hard to access due to high and adjoining hilly forts of breasts; the adjacent belly with three-fold rivers make the passage fearful; and the path is beset with labyrinthine arrays of hairy forest-bushes. Which men, blinded by lust, have not got into trouble as they each the vulva?

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जिस स्थान का मार्ग ऊंचे पर्वतों से दुर्गम हो, जिसके मध्य में नदियां पडती हों, तथा जो भयानक वन से व्याप्त हो,ऐसे मार्ग में उस स्थान को जानेवाले प्राणी जैसे अतिशय खेद को प्राप्त होते हैं वैसे ही पर्वत जैसे उन्नत स्तनों से सहित, त्रिवलीरूप नदियों से वेष्टित और रोमपंक्तिरूप वनराजि से व्याप्त उस योनिस्थान को प्राप्त करनेवाले कामीजन भी इस लोक में खेद को (आकुलता को) प्राप्त होते हैं तथा इस प्रकार से पाप का संचय करके वे परलोक में भी दुखी होते है॥१३२॥