+ नारी के प्रति आसक्ति में निर्लज्जता -
अपत्रप तपोऽग्निना भयजुगुप्सयोरास्पदं
शरीरमिदमर्धदग्धशववन्न किं पश्यसि ।
वृथा व्रजसि किं रतिम् ननु न भीषयस्यातुरो
निसर्गतरलाः स्त्रियस्त्वदिह ताः स्फुटं बिभ्यति ॥१३१॥
अन्वयार्थ : हे निर्लज्ज ! यह तेरा शरीर तपरूप अग्नि से अधजले शव (मृत शरीर) के समान भय और घृणा का स्थान बन रहा है । क्या तू उसे नहीं देखता है? फिर तू उत्सुक होकर व्यर्थ में क्यों स्त्रियों के विषय में अनुराग को प्राप्त होता है। ऐसे शरीर को धारण करता हुआ तू उन स्त्रियों के लिये भय को न उत्पन्न कराता हो सो बात नहीं है, किन्तु उन्हें निश्चय से भय को प्राप्त कराता ही है । संसार में स्त्रियां स्वभाव से ही कातर होती हैं । वे तेरे भयानक शरीर को देखकर स्पष्टतया भयभीत होती हैं॥१३१॥
Meaning : O shameless (ascetic)! Your body has become like a halfburnt corpse – an object of fear and disgust – due to the fire of your austerities (tapa). Then, why do you get anxious and seek pointlessly enjoyment from women? Such a body of yours certainly frightens the women, fearful by nature.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जो भव्य जीव सब इन्द्रियविषयों को छोडकर मुनिधर्म को स्वीकार करता है और तपश्चरण में प्रवृत्त हो जाता है वह यदि तत्पश्चात् स्त्रियों के विषय में अनुरक्त होता है तो यह उसके लिये लज्जा की बात है । ऐसे ही साधु के लक्ष्य में रखकर यहां यह कहा गया है कि हे निर्लज्ज ! तेरा यह शरीर तप के कारण मलिन एवं बीभत्स हो गया है । तू जिन स्त्रियों को चाहता है वे तेरे इस घृणित शरीर को देखकर इस प्रकार से भयभीत होगी जिस प्रकार कि मनुष्य अधजले मृतशरीर (मुर्दा) को देखकर भयभीत होते हैं । ऐसी अवस्था में यह तू ही बता कि जैसे तू उन स्त्रियों को चाहता है वैसे ही क्या वे भी तुझे चाहेगी या नहीं ? चाहना तो दूर ही रहा, किन्तु वे तुझे देखकर भय से दूर ही भागेगीं। फिर भला तू उनके विषय में अनुरक्त होकर व्यर्थ में अपने आपको क्यों दुर्गति में डालता है ? यह तेरे लिये उचित नहीं है ॥१३१॥