+ विषय-सुख का पोषण करनेवाले ठग -
अध्यास्यापि तपोवनं बत परे नारीकटीकोटरे
व्याकृष्टा विषयै: पतन्ति करिणः कूटावपाते यया ।
प्रोचे प्रीतिकरीं जनस्य जननीं प्राग्जन्मभूमिं च यो
व्यक्तं तस्य दुरात्मनो दुरुदितैर्मन्ये जगद्वञ्चितम् ॥१३४॥
अन्वयार्थ : दूसरे मनुष्य तप के निमित्त वन का आश्रय ले करके भी इन्द्रियविषयों के द्वारा खीचे जाकर स्त्री के योनिस्थान में इस प्रकार से गिरते हैं जिस प्रकार कि हाथी अपने पकडने के लिये बनाये गये गड्ढे में गिरते हैं । जो योनिस्थान प्राणी के जन्म की भूमि होने से माता के समान है उसे जो दुष्ट कवि प्रीति का कारण बतलाते हैं वे स्पष्टतया अपने दुष्ट वचनों के द्वारा विश्व को ठगाते हैं॥१३४॥
Meaning : Men take to the woods to practise austerities. Still, attracted by sexual-indulgence, they fall into woman’s private parts; just as the male elephants fall into the camouflaged pits. The evil poets, who call woman’s private parts, the birthplace of living beings, attractive, clearly deceive the world by their wicked words

  भावार्थ 

भावार्थ :