
भावार्थ :
विशेषार्थ- कहा जाता है कि देवों ने जब समुद्रका मंथन किया था तो उन्हें उसमें से पहिले विष प्राप्त हुआ था और उसका पान महादेव ने किया था। उक्त विष के पी लेने पर भी जिस महादेव को विषजनित कोई वेदना नहीं हुई थी वही महादेव पार्वती आदि स्त्रियों के द्वारा काम से संतप्त करके पीडित किया जाता है । इससे यह निश्चित होता है कि लोग जिस विष को दुःखदायक मानते हैं वह वास्तव में उतना दुःखदायक नहीं है- उससे अधिक दुःख देनेवालीं तो स्त्रियां हैं । अतएव उन स्त्रियों को ही विषम विष समझना चाहिये। कारण कि उपर्युक्त विष की तो चिकित्सा भी की जा सकती है, किन्तु स्त्रीरूप विष की चिकित्सा नहीं की जा सकती है॥१३५॥ |