+ तप को मलिन करनेवालों की निन्‍दा -
विशुद्धयति दुराचारः सर्वोऽपि तपसा ध्रुवम् ।
करोति मलिनं तच्च किल सर्वाधरः परः ॥१६७॥
अन्वयार्थ : जिस तप के द्वारा नियमतः सब ही दुष्ट आचरण शुद्धि को प्राप्त होता है उस तप को भी दूसरा निकृष्ट मनुष्य मलिन करता है ॥१६७॥
Meaning : The austerities (tapa), as a rule, purify evil-conduct. The other wretched man (the ascetic) defiles even these austerities (tapa).

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- जो जल वस्तु की मलिनता को दूरकर उसे शुद्ध करता है उस जल को ही यदि कोई गंदला करता है तो वह जिस प्रकार निन्दा का पात्र होता है, उसी प्रकार जो तप पूर्वोपार्जित पाप को नष्ट करके आत्मा को शुद्ध करने वाला है उसे ही यदि कोई दुश्चरित्र साधु अपने पापाचरण से मलिन करता है तो वह सबसे नीच ही कहा जावेगा। इस प्रकार के दुराचरण से न जाने उसको कितने महान् दुख सहने पडेंगे ॥१६७॥