
भावार्थ :
विशेषार्थ--- दुख का कारण शोक और उस शोक का भी कारण इष्टसामग्री का अभाव है। इसी प्रकार सुख का कारण राग और उस राग का भी कारण उक्त इष्टसामग्री की प्राप्ति है। परन्तु यथार्थ में यदि विचार करें तो कोई भी बाह्य पदार्थ न तो इष्ट है और न अनिष्ट भी- यह तो अपनी रुचि के अनुसार प्राणी की कल्पना मात्र है। कहा भी है- अनादौ सति संसारे केन कस्य न बन्धुता। सर्वथा शत्रुभावश्च सर्वमेतद्धि कल्पना ॥ अर्थात् संसार अनादि है । उसमें जो किसी समय बन्धु रहा है वहीं अन्य समय में शत्रु भी रह सकता है। इससे यही निश्चित होता है कि इस अनादि संसार में न तो वास्तव में कोई मित्र है और न कोई शत्रु भी। यह सब प्राणी की कल्पना मात्र है ॥ क्ष. चू . 1-61 ॥ इसीलिये विवेकी जन ममत्वबुद्धि से रहित होकर इष्ट की हानि में कभी शोक नहीं करते । इससे वे सदा ही सुखी रहते हैं ॥१८६॥ |