+ पर-लोक में कौन सुखी और कौन दुःखी ? -
सुखी सुखमिहान्यत्र दुःखी दुःखं समश्नुते ।
सुखं सकलसंन्यासो दुःखं तस्य विपर्ययः ॥१८७॥
अन्वयार्थ : जो प्राणी इस लोक में सुखी है वह परलोक में भी सुख को प्राप्त होता है तथा जो इस लोक में दुखी है वह परलोक में भी दुख को प्राप्त करता है। कारण यह कि समस्त इन्द्रियविषयों से विरक्त होने का नाम सुख और उनमें आसक्त होने का नाम ही दुख है ॥१८७॥
Meaning : The man who is happy in this world attains happiness in the after-life too. The man who is unhappy in this world attains unhappiness in the after-life too. The reason is that getting detached from all worldly possessions – renouncing the sense-pleasures – is happiness and getting attached to the worldly possessions – indulging in the sense-pleasures – is unhappiness.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- आकुलता का नाम दुख और उसके अभाव का नाम सुख है। जो प्राणी विषयभोगोंकी तृष्णा से युक्त होकर अपनी इच्छानुसार उन्हें प्राप्त करने का प्रयत्न करता है वह व्याकुल होकर जैसे इस लोक में परिश्रमजन्य दुख को सहता है वैसे ही वह उक्त विषयों के लाभालाभ में हर्ष व विवाद को प्राप्त होता हुआ पापकर्म को उपार्जित करके परलोक में भी दुर्गति के दुख को सहता है । इसके विपरीत जो स्वेच्छा से उन विषय-भोगों की अभिलाषा न करके उन्हें छोड देता है और तप-संयम को स्वीकार करता है वह निराकुल रहकर जैसे इस लोक में सुख का अनुभव करता है वैसे ही वह राग-द्वेष से रहित हो जाने के कारण पाप कर्म से रहित होकर परलोक (स्वर्गादि) में भी सुख का अनुभव करता है ॥१८७॥