
भावार्थ :
विशेषार्थ- जो विषयों से विरक्त होकर तप में प्रवृत्त हुआ है वह यदि स्त्रीजन आदि को देखकर फिर से विषय की इच्छा करता है तो इससे उसका बहुत अधिक अहित होनेवाला है । जैसे कि कोई रोगी यदि तेल-घी आदि अपथ्य वस्तुओं का सेवन करता है तो इससे उसका रोग अधिक ही बढता है और तब वह इससे भी अधिक कष्ट में पडता है । परन्तु जो स्वस्थ है उसके लिये उन घी-तेल आदि पदार्थों का सेवन निषिद्ध नहीं है । कारण कि वह उनको पचा सकता है । इसी प्रकार यदि कोई गृहस्थ स्त्री आदि को देखकर विषयसुख की इच्छा करता है तो इससे उसका कुछ विशेष अहित होने वाला नहीं है । कारण यह कि वह गृहस्थ अवस्था में स्थित है- अभी वह उनका परित्याग नहीं कर सका है। परन्तु जो साधु अवस्था में स्थित है और जो उनका परित्याग कर चुका है वह यदि फिर से उनमें अनुरक्त होता है तो यह उसके लिये लज्जाजनक तो है ही, साथ ही इससे उसकी परलोक में भी बहुत अधिक हानि होनेवाली है ॥१९१॥ |