
शरीरमपि पुष्णन्ति सेवन्ते विषयानपि ।
नास्त्यहो दुष्करं नृणां विषाद्वाञ्छन्ति जीवितुम् ॥१९६॥
अन्वयार्थ : अज्ञानी जन शरीर को पुष्ट करते हैं और विषयों का भी सेवन करते हैं । ठीक है- ऐसे मनुष्यों को कोई भी कार्य दुष्कर नहीं है- वे सब ही अकार्य कर सकते हैं। वे वैसा करते हुए मानो विष से जीवित रहने की इच्छा करते हैं ॥१९६॥
Meaning : The ignorant men nourish their body and indulge in sense-pleasures. Nothing is impossible for such men; they indulge in all wrong-doings. While doing so, they wish to live on poison.
भावार्थ