
इतस्ततश्च त्रस्यन्तो विभावर्यां यथा मृगाः ।
वनाद्विशन्त्युपग्रामं कलौ कष्टं तपस्विनः ॥१९७॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार हिरण वन में इधर उधर दुखी होकर- सिंहादिकों से भयभीत होकर- रात्रि में उस वन से गांव के निकट आ जाते हैं उसी प्रकार इस पंचम काल में मुनिजन भी वन में इधर उधर दुखी होकर- हिंसक एवं अन्य दुष्ट जनों से भयभीत होकर- रात्रि में वन को छोडकर गांव के समीप रहने लगे हैं, यह खेद की बात है ॥१९७॥
Meaning : The anguished forest-dwelling deer, out of fear of the lion and other animals, shift at night, for their safety, near a village. It is a pity that in this kali age , the anguished forest-dwelling ascetics, out of fear, shift at night, for their safety, near a village.
भावार्थ