+ शरीर के तीन प्रकार -
भागत्रयमयं नित्यमात्मानं बन्धवर्तिनम् ।
भागद्वयात्पृथक् कर्तुं यो जानाति स तत्त्ववित् ॥२११॥
अन्वयार्थ : इस प्रकार इन तीन भागोंस्वरूप व कर्मबन्ध से सहित नित्य आत्मा को जो प्रथम दो भागों से पृथक करने के विधान को जानता है उसे तत्त्वज्ञानी समझना चाहिये ॥२११॥
Meaning : The one who knows these three components of the eternal soul that presently is bound with karmas, and also the method of separating the first two from the eternal soul, is to be known as the knower of the reality.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- ऊपर संसारी जीव को जिन तीन भागोंस्वरूप बतलाया है उनमें प्रथम दो भाग-सप्तधातुमय शरीर और कार्मण शरीर-आत्मस्वरूप से भिन्न, जड एवं पौद्गलिक हैं तथा तीसरा भाग जो ज्ञानादिस्वरूप है वह आत्मस्वरूप चेतन है और वही उपादेय है। इस प्रकार जो जानता है तथा तदनुरूप आचरण भी करता है वह तत्त्वज्ञ है। इसके विपरीत जो प्रथम दो भागों को ही आत्मा समझता है और इसीलिये जो उनसे आत्मा को पृथक् करने का प्रयत्न नहीं करता है वह अज्ञानी है ॥२११॥