+ कषाय-शत्रु को जीतना आसान -
करोतु न चिरं घोरं तपः क्लेशासहो भवान् ।
चित्तसाध्यान् कषायारीन् न जयेद्यत्तदज्ञता ॥२१२॥
अन्वयार्थ : यदि तू कष्ट को न सहने के कारण घोर तप का आचरण नहीं कर सकता है तो न कर । परन्तु जो कषायादिक मन से सिद्ध करने योग्य हैं- जीतने योग्य हैं- उन्हें भी यदि नहीं जीतता है तो वह तेरी अज्ञानता है ॥२१२॥
Meaning : If you do not observe severe austerities (tapa) because of your inability to endure hardships, let it be. However, if you do not subjugate passions (kaÈāya), etc., which are conquered through the control of the mind, then it is your ignorance.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- तपश्चरण में भूख आदि के दुख को सहना पडता है, इसलिये यदि अनशन आदि तपों को नहीं किया जा सकता है तो न भी किया जाय । परन्तु जो राग,द्वेष,एवं क्रोधादि आत्मा का अहित करने वाले हैं उनको तो भले प्रकार से जीता जा सकता है । कारण कि उनके जीतने में न तो तप के समान कुछ कष्ट सहना पडता है और न मन के अतिरिक्त किसी अन्य सामग्री की अपेक्षा भी करनी पड़ती है । इसलिये उक्त रागद्वेषादि को तो जीतना ही चाहिये । फिर यदि उनको भी प्राणी नहीं जीतना चाहता है तो यह उसकी अज्ञानता ही कही जावेगी॥२१२॥