+ मान से होनेवाली हानि -
चक्रं विहाय निजदक्षिणबाहुसंस्थं
यत्राव्रजन्ननु तदैव स तेन मुञ्चेत् ।
क्लेशं तमाप किल बाहुबली चिराय
मानो मनागपि हतिम् महतीं करोति ॥२१७॥
अन्वयार्थ : अपनी दाहिनी भुजा के ऊपर स्थित चक्र को छोडकर जिस समय बाहुबली ने दीक्षा ग्रहण की थी उसी समय उन्हें उस तप के द्वारा मुक्त हो जाना चाहिये था। परन्तु वे चिरकाल तक उस क्लेश को प्राप्त हुए। ठीक है- थोडा-सा भी मान बडी भारी हानि को करता है ॥२१७॥
Meaning : Soon after Bāhubalī took to asceticism, after abandoning the divine spinning-wheel (cakra) that had descended on his right arm, he should have attained liberation due to his austerities (tapa). But he remained troubled for a long time. It is right; even slightest pride results in great harm.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- भरत चक्रवर्ती जब भरत क्षेत्र के छहों खण्डों को जीतकर वापिस अयोध्या आये तब उनका चक्ररत्न अयोध्या नगरी के मुख्य द्वार पर ही रुक गया-वह उसके भीतर प्रविष्ट न हो सका । कारण का पता लगाने पर भरत को यह ज्ञात हुआ कि मेरा छोटा भाई बाहुबली मेरी अधीनता स्वीकार नहीं करता है । एतदर्थ भरत ने अपने दूत को भेजकर बाहुबली को समझाने का प्रयत्न किया, किन्तु वह निष्फल हुआ- बाहुबली ने भरत की अधीनता स्वीकार नहीं की । अन्त में युद्ध में निरर्थक होनेवाले प्राणिसंहार से डरकर उन दोनों के बुद्धिमान् मंत्रियों द्वारा भरत और बाहुबली के बीच जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध और बाहुयुद्ध ये जो तीन युद्ध निर्धारित किये गये थे, उन तीनों ही युद्धों में भरत तो पराजित हुए और बाहुबली विजयी हुए। इस अपमान के कारण क्रोधित होकर भरत ने चक्ररत्न का स्मरण कर उसे बाहुबली के ऊपर चला दिया । परन्तु वह उनका घात न करके उनके हाथ में आकर स्थित हो गया। इस घटना से बाहुबली को विरक्ति हुई । तब उन्होंने समस्त परिग्रह को छोडकर जिनदीक्षा धारण कर ली। उस समय उन्होंने एक वर्ष का प्रतिमायोग धारण किया । तब तक वे भोजनादि का त्याग करके एक ही आसन से स्थित होते हुए ध्यान करते रहे। इस प्रतिमायोग के समाप्त होने पर भरत चक्रवर्ती ने आकर उनकी पूजा की और तब उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पूर्व उनके हृदय में कुछ थोडी-सी ऐसी चिन्ता रही कि मेरे द्वारा भरत चक्रवर्ती संक्लेश को प्राप्त हुआ है । इसीलिये सम्भवतः तबतक उन्हें केवलज्ञान नहीं प्राप्त हुआ और भरतचक्रवर्ती के द्वारा पूजित होने पर वह केवलज्ञान उन्हें तत्काल प्राप्त हो गया (देखिए महापुराण पर्व 36) । पउमचरिउ (5, 13, 19) के अनुसार ‘मैं भरत के क्षेत्र (भूमि) में स्थित हूं' ऐसी थोडी-सी कषाय के विद्यमान रहने से तब तक उन्हें केवलज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई । बाहुबली का हृदय मानकषाय से कलुषित रहा, ऐसा उल्लेख

'देहादिचत्तसंगो माणकसाएण कलुसिओ धीर ।

अत्तावणेण जादो बाहुबली कित्तियं कालं ॥४४॥'

इस भावप्राभृत की गाथा में भी पाया जाता है। इस प्रकार देखिये कि थोडा-सा भी अभिमान कितनी भारी हानि को प्राप्त कराता है ॥२१७॥