
भावार्थ :
विशेषार्थ- जब महादेव तपस्या कर रहे थे तब उनको प्रसन्न करने के लिये पार्वती कामदेव के साथ वहां पहुंची और नृत्यादि के द्वारा उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करने लगी, इधर कामदेव ने भी बसन्त ऋतु का निर्माण कर उनके ऊपर पुष्पबाणों को छोडना प्रारम्भ कर दिया। इससे क्रोधित होकर महादेव ने तीसरे नेत्र से अग्नि को प्रगट कर उक्त कामदेव को भस्म ही कर दिया । ऐसी कथा महाकवि कालिदासकृत कुमारसम्भव आदि में प्रसिद्ध है। इसी कथा को लक्ष्य में रखकर यहां बतलाया है कि महादेव ने जिस कामदेव को क्रोध के वश होकर भस्म किया था वह तो वास्तव में कामदेव नहीं था, सच्चा कामदेव तो उनके हृदय में स्थित था जिसे उन्होंने जाना ही नहीं। इसीलिये उस कामदेव ने पीछे पार्वती के साथ विवाह हो जाने पर उनकी वह दुरवस्था की थी। यह सब अनर्थ एक क्रोध के कारण हुआ। अतएव ऐसे अनर्थकारी क्रोध का परित्याग ही करना चाहिये॥२१६॥ |