
भावार्थ :
विशेषार्थ- लोक में देखा जाता है कि जिनके पास कुछ भी नहीं है उन्हें चोर आदि का कुछ भी भय नहीं रहता । वे रात्रि में निश्चिन्त होकर गाढ निद्रा में सोते हैं । किन्तु जिनके पास धन-संपत्ति आदि होती है वे सदा भयभीत रहते हैं। उन्हें चोर-डाकू आदि से उसकी रक्षा करनी पड़ती है। इसीलिये वे रात्रि में सदा सावधान रहते हैं- निश्चिन्तता से नहीं सोते हैं । यदि कोई धनवान् निश्चिन्ता से सोता है तो चोरों द्वारा उसका धन लूट लिया जाता है। इसी प्रकार से जो प्राणी विषयों के दास बने हुए हैं उनके पास तो बहुमूल्य संपत्ति (सम्यग्दर्शनादि) कुछ भी नहीं है । इसीलिये वे चाहे सावधान रहे और चाहे असावधान, दोनों ही अवस्थायें उनके लिये समान हैं। परन्तु जिसके पास सम्यग्दर्शनादिरूप अमूल्य संपत्ति है तथा जिसे चुराने के लिये उसके चारों ओर इन्द्रियरूप चोर भी घूम रहे हैं उसे तो उसकी रक्षा करने के लिये सदा ही सावधान रहना चाहिये । कारण यह कि यदि उसने इस विषय में थोडी-सी भी असावधानी की तो उसकी यह बडे परिश्रम से प्राप्त की गई संपत्ति उक्त चोरों के द्वारा अवश्य लूट ली जावेगी-नष्ट कर दी जावेगी । इसीलिये यहां ऐसे ही साधु को लक्ष्य करके यह प्रेरणा की गई है कि तू सदा सावधान रहकर अपने रत्नत्रय की रक्षा कर ॥२२७॥ |