+ ज्ञान-चारित्ररूपी मूल्य चुकाकर मोक्ष प्राप्त करने की प्रेरणा -
मञ्क्षु मोक्षं सुसम्यक्त्व सत्यंकारस्वसात्कृतम् ।
ज्ञानचारित्रसाकल्यमूल्येन स्वकरे कुरु ॥२३४॥
अन्वयार्थ : हे भव्य ! तू निर्मल सम्यग्दर्शनरूप ब्याना देकर अपने आधीन किये हुए मोक्ष को सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप पूरा मूल्य देकर शीघ्र ही अपने हाथ में करले॥२३४॥
Meaning : O worthy soul! By paying the earnest money in form of right faith (samyagdarśana), you have booked liberation. Now, by promptly paying the balance amount in form of right knowledge (samyagjñāna) and right conduct (samyakcāritra), take its possession.

  भावार्थ 

भावार्थ :

विशेषार्थ- लोकव्यवहार में जब कोई किसी वस्तु को खरीदना चाहता है तो वह इसके लिये पहिले कुछ ब्याना (मैं निश्चित ही इसे खरीदूंगा, इस प्रकारका वायदा करते हुए उसके मूल्य का कुछ भाग जो पूर्व में दिया जाता है) देकर उक्त वस्तु को अपने आधीन कर लेता है, जिससे कि उक्त वस्तु का स्वामी उसे किसी अन्य व्यक्ति को न बेच सके । तत्पश्चात् वह उक्त वस्तु का पूरा मूल्य देकर उसे अपने हाथ में कर लेता है। ठीक इसी प्रकार से जो भव्य जीव मोक्ष को प्राप्त करना चाहता है उसे पहिले ब्याना के रूप में सम्यक्त्व को देना चाहिये- धारण करना चाहिये। तत्पश्चात् सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप पूर्ण मूल्य के द्वारा उक्त मोक्ष को अपने हाथ में कर लेना चाहिये । अभिप्राय यह है कि जिस प्रकार ब्याना देने से अभिलषित वस्तु उस ब्याना देनेवाले के लिये निश्चित हो जाती है उसी प्रकार सम्यक्त्व की प्राप्ति से अर्धपुद्गलपरावर्तन प्रमाणकाल के भीतर मोक्ष का लाभ भी निश्चित हो जाता है। इतने काल के भीतर जब भी वह पूर्ण मूल्य के समान सम्यग्ज्ञान और सम्यकचारित्र को प्राप्त कर लेता है तब ही उसे अपने अभीष्ट उक्त मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है ॥२३४॥