उहयगुणवसणभयमलवेरग्गादीयारभत्तिऽविग्घं वा ।
एदे सत्तत्तरिया, दंसणसावयगुणा भणिदा ॥8॥
उभयगुण-व्यसनभय-मल-वैराग्यातिचार-भक्तिअविघ्नानि वा ।
एते सप्तसप्तति: दर्शनश्रावक-गुणा: भणिता:॥
अन्वयार्थ : उभयगुण , व्यसनोंका अभाव, भयों का अभाव मलों का अभाव, वैराग्य भावनाएँ, अतीचारों का अभाव, एवं निर्विघ्न भक्ति-भावना । ये दार्शनिकश्रावक के सतहत्तर गुण कहे गये हैं ॥8॥