उहयगुणवसणभयमलवेरग्गादीयारभत्तिऽविग्घं वा ।
एदे सत्तत्तरिया, दंसणसावयगुणा भणिदा ॥8॥
उभयगुण-व्यसनभय-मल-वैराग्यातिचार-भक्तिअविघ्नानि वा ।
एते सप्तसप्तति: दर्शनश्रावक-गुणा: भणिता:॥
अन्वयार्थ : उभयगुण (आठ-मूलगुण और बारह उत्तरगुण), (सात) व्यसनोंका अभाव, (सात) भयों का अभाव (पच्चीस) मलों का अभाव, (बारह) वैराग्य भावनाएँ,(पाँच) अतीचारों का अभाव, एवं निर्विघ्न (निरतिचार) भक्ति-भावना । ये दार्शनिकश्रावक के सतहत्तर गुण कहे गये हैं ॥8॥