मयमूढमणायदणं संकादिवसणभयमदीयारं ।
जेसिं चउवालीसे ण संति ते होंति सद्दिठ्ठी ॥7॥
मदमूढमनायतनं शङ्कादिव्यसनभयमतीचारम् ।
येषां चतुश्चत्वारिंशत् न सन्ति ते भवन्ति सद्दृष्टय:॥
अन्वयार्थ : जिनके (आठ) मद, (तीन) मूढ़ताएँ, (छ:) अनायतन, (आठ)शंका आदि दोष, (सात) व्यसन, (सात) भय, (पाँच) अतीचार । ये चौवालीस दोषनहीं होते, वे सद्दृष्टि (सम्यग्दृष्टि) होते हैं ॥7॥